रेलवे के लोकोपायलट (Train Driver) का काम केवल ट्रेन चलाना ही नहीं होता, बल्कि उसे यह भी सुनिश्चित करना होता है कि ट्रेन सही समय पर और सही जगह पर रुके। यह काम आसान नहीं है, क्योंकि ट्रेनों को अचानक रोकना संभव नहीं होता। लोकोपायलट को पहले से ही यह जानकारी होनी चाहिए कि अगला स्टेशन कब और कहां आने वाला है। इसके लिए रेलवे ने कई तकनीकी और संकेत प्रणाली विकसित की हैं, जो लोकोपायलट को मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि लोकोपायलट को कैसे पता चलता है कि स्टेशन आने वाली है, और इसके लिए कौन-कौन सी तकनीक और संकेत प्रणाली का उपयोग किया जाता है।
लोकोपायलट को स्टेशन की जानकारी कैसे मिलती है?
तरीका | विवरण |
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सिग्नल सिस्टम | सिग्नल लाइट्स जैसे होम सिग्नल, आउटर सिग्नल, रूटिंग सिग्नल का उपयोग। |
मार्ग का ज्ञान | लोकोपायलट द्वारा रूट का अध्ययन और अनुभव। |
Fog Safety Devices (FSD) | GPS आधारित उपकरण जो स्टेशन और सिग्नल की दूरी बताते हैं। |
FogPASS सिस्टम | लोकोमोटिव में लगे GPS उपकरण जो धुंध में भी सटीक जानकारी देते हैं। |
मार्कर और लैंडमार्क्स | पटरियों पर लगे मार्कर जो प्लेटफॉर्म पर सही जगह रुकने में मदद करते हैं। |
वॉयस अनाउंसमेंट सिस्टम | उपकरण द्वारा आवाज में सूचना देना। |
संचार प्रणाली | स्टेशन मास्टर और कंट्रोल रूम से संपर्क के लिए वॉकी-टॉकी और टेलीफोन। |
सिग्नल सिस्टम का महत्व
रेलवे में सिग्नल सिस्टम लोकोपायलट के लिए सबसे महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रणाली है। यह उन्हें न केवल स्टेशन की जानकारी देता है, बल्कि ट्रेन को धीमा करने या रोकने के संकेत भी प्रदान करता है।
प्रमुख सिग्नल्स
- आउटर सिग्नल (Outer Signal): यह स्टेशन से पहले लगाया जाता है और लोकोपायलट को सतर्क करता है कि स्टेशन आने वाला है।
- होम सिग्नल (Home Signal): यह स्टेशन के प्रवेश द्वार पर होता है और ट्रेन को प्लेटफॉर्म पर जाने की अनुमति देता है।
- रूटिंग सिग्नल (Routing Signal): यह बताता है कि ट्रेन किस लाइन पर जाएगी।
- स्टार्टर सिग्नल (Starter Signal): प्लेटफॉर्म से ट्रेन को आगे बढ़ाने की अनुमति देता है।
सिग्नल लाइट्स के रंग
- ग्रीन: आगे बढ़ सकते हैं।
- येलो: सतर्क रहें, अगला सिग्नल स्टॉप हो सकता है।
- रेड: रुकें।
Fog Safety Devices (FSD) का उपयोग
धुंध या कम दृश्यता के दौरान लोकोपायलट को मार्गदर्शन देने के लिए रेलवे ने Fog Safety Device विकसित किया है।
FSD की विशेषताएं:
- GPS आधारित उपकरण।
- 500 मीटर पहले ही सिग्नल की जानकारी देता है।
- आवाज में अलर्ट प्रदान करता है।
- लोकोमोटिव में फिट किया जाता है और रूट डेटा पहले से लोड होता है।
FogPASS सिस्टम
Northeast Frontier Railway ने FogPASS नामक एक उन्नत GPS प्रणाली विकसित की है, जो लोकोपायलट को स्टेशन और सिग्नलों की दूरी बताती है।
लोकोपायलट का मार्ग ज्ञान
लोकोपायलट बनने से पहले उम्मीदवारों को अपने मार्ग का विस्तृत अध्ययन करना पड़ता है। इसमें शामिल हैं:
- प्रत्येक स्टेशन की दूरी।
- ट्रैक की ढलान और मोड़।
- गति सीमा (Speed Limit)।
- प्रमुख लैंडमार्क्स जैसे पुल, क्रॉसिंग आदि।
अनुभव का महत्व
अनुभवी लोकोपायलट अपने मार्ग पर स्थायी लैंडमार्क्स जैसे इमारतों या पुलों का उपयोग करते हैं ताकि उन्हें पता चल सके कि अगला स्टेशन कब आएगा।
प्लेटफॉर्म पर सही जगह रुकने के तरीके
लोकोपायलट प्लेटफॉर्म पर सही जगह रुकने के लिए Track Markers या Platform Markers का उपयोग करते हैं। ये मार्कर पटरियों या प्लेटफॉर्म पर पेंट किए जाते हैं।
कंप्यूटर असिस्टेड ब्रेकिंग
कुछ आधुनिक ट्रेनों में Computer Assisted Braking Systems होते हैं, जो प्लेटफॉर्म पर सही जगह रुकने में मदद करते हैं।
संचार प्रणाली का उपयोग
लोकोपायलट नियमित रूप से स्टेशन मास्टर और कंट्रोल रूम से संपर्क बनाए रखते हैं। इसके लिए:
- वॉकी-टॉकी सेट।
- टेलीफोन कनेक्शन।
- डिजिटल डिस्प्ले मॉनिटर।
ट्रेन संचालन में अन्य तकनीकें
- ऑटोमैटिक ब्लॉक सिस्टम: यह सुनिश्चित करता है कि दो ट्रेनों के बीच पर्याप्त दूरी बनी रहे।
- डिटोनेटर: धुंध में पटरियों पर रखे जाते हैं ताकि लोकोपायलट को अलर्ट किया जा सके।
- सेंसर आधारित ब्रेकिंग सिस्टम: ट्रेन को सुरक्षित रूप से रोकने में मदद करता है।
लोकोपायलट बनने के लिए जरूरी योग्यताएं
लोकोपायलट बनने के लिए उम्मीदवारों को रेलवे द्वारा निर्धारित प्रशिक्षण लेना पड़ता है। इसमें शामिल हैं:
- रेलवे प्रशिक्षण संस्थान से तकनीकी शिक्षा।
- मार्ग अध्ययन और व्यावहारिक अनुभव।
- सुरक्षा मानकों का पालन।
निष्कर्ष
लोकोपायलट एक जिम्मेदारी भरा काम करते हैं, जिसमें उन्हें हर समय सतर्क रहना पड़ता है। रेलवे द्वारा विकसित आधुनिक तकनीकें जैसे Fog Safety Devices, GPS Systems, और सिग्नल सिस्टम उनके काम को आसान बनाती हैं।
Disclaimer: यह लेख केवल जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से लिखा गया है। वास्तविक तकनीकों और प्रक्रियाओं की पुष्टि रेलवे अधिकारियों से करें।