हाल ही में मोदी सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में 2 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की है। यह फैसला ऐसे समय में लिया गया जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट हो रही है।
हालांकि, सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि इस बढ़ोतरी का सीधा असर आम जनता की जेब पर नहीं पड़ेगा। इस कदम के पीछे सरकार की एक बड़ी रणनीति छिपी हुई है, जिसे समझना जरूरी है।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि पेट्रोल पर टैक्स क्यों बढ़ाया गया, इसका उद्देश्य क्या है, और इससे देश की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा। साथ ही, यह भी देखेंगे कि सरकार का यह कदम कितना कारगर साबित हो सकता है।
Petrol-Diesel tax rise:
एक्साइज ड्यूटी और इसका महत्व:
एक्साइज ड्यूटी वह कर है जो केंद्र सरकार पेट्रोल और डीजल जैसे उत्पादों पर लगाती है। यह कर सरकार की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत होता है। वर्तमान में पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 13 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 10 रुपये प्रति लीटर हो गई है।
टैक्स बढ़ाने के कारण:
- राजस्व में वृद्धि: वित्तीय वर्ष 2025 की पहली छमाही में पेट्रोलियम क्षेत्र से उत्पाद शुल्क के जरिए सरकारी खजाने में 1.22 लाख करोड़ रुपये का योगदान हुआ। टैक्स बढ़ाकर इस योगदान को और बढ़ाना लक्ष्य है।
- कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट: अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें जनवरी 2025 में 83 डॉलर प्रति बैरल थीं, जो अब घटकर लगभग 64 डॉलर प्रति बैरल हो गई हैं। सरकार ने इस मौके का फायदा उठाकर अतिरिक्त राजस्व जुटाने का फैसला किया।
- एलपीजी सब्सिडी और घाटा कवर करना: तेल विपणन कंपनियों को हुए घाटे को कवर करने के लिए भी यह कदम उठाया गया है।
मुख्य बिंदुओं का सारांश (टेबल):
बिंदु | विवरण |
---|---|
टैक्स का नाम | एक्साइज ड्यूटी |
पेट्रोल पर नई दर | 13 रुपये प्रति लीटर |
डीजल पर नई दर | 10 रुपये प्रति लीटर |
टैक्स बढ़ाने का उद्देश्य | राजस्व वृद्धि, एलपीजी घाटा कवर करना |
अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतें | जनवरी 2025: $83/बैरल; अप्रैल 2025: $64/बैरल |
लागू होने की तारीख | 8 अप्रैल 2025 |
आम जनता पर प्रभाव | खुदरा कीमतों में कोई वृद्धि नहीं |
सरकार को अनुमानित राजस्व वृद्धि | वित्तीय स्थिरता के लिए आवश्यक |
टैक्स बढ़ाने के फायदे:
1. सरकारी राजस्व में वृद्धि
सरकार को उत्पाद शुल्क से बड़ी मात्रा में आय होती है। इससे बुनियादी ढांचे के विकास, सामाजिक योजनाओं और अन्य परियोजनाओं के लिए धन जुटाया जा सकता है।
2. वित्तीय स्थिरता बनाए रखना
केंद्रीय बजट 2025 के तहत कर राहत दी गई थी, जिससे सरकारी खजाने पर दबाव पड़ा। टैक्स बढ़ाकर इस दबाव को कम किया जा सकता है।
3. तेल कंपनियों को राहत
तेल विपणन कंपनियां (OMCs) कम कीमतों पर खरीदे गए कच्चे तेल का उपयोग कर रही हैं। इससे उन्हें खुदरा कीमतें बढ़ाए बिना अतिरिक्त कर वहन करने में मदद मिलेगी।
जनता पर प्रभाव:
सकारात्मक प्रभाव
- खुदरा कीमतों में कोई वृद्धि नहीं हुई।
- यदि कच्चे तेल की कीमतें और गिरती हैं, तो पेट्रोल-डीजल सस्ते हो सकते हैं।
नकारात्मक प्रभाव
- घरेलू गैस सिलेंडर (LPG) के दामों में वृद्धि हुई है, जिससे मध्यम वर्गीय परिवारों पर बोझ बढ़ा है।
- लंबे समय तक टैक्स बढ़ने से ईंधन लागत अन्य क्षेत्रों (जैसे परिवहन) को प्रभावित कर सकती है।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण
मोदी सरकार ने पहले भी कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का फायदा उठाकर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई थी:
- नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के बीच पेट्रोल पर ₹11.77 और डीजल पर ₹13.47 प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई गई थी।
- इससे सरकारी खजाने को बड़ी राहत मिली थी, लेकिन आम जनता को इसका लाभ कम मिला।
आलोचनाएं और चुनौतियां:
आलोचनाएं
- सरकार ने तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों का लाभ आम जनता तक नहीं पहुंचाया।
- घरेलू गैस सिलेंडर महंगा होने से गरीब और मध्यम वर्गीय परिवार प्रभावित हुए।
चुनौतियां
- यदि कच्चे तेल की कीमतें अचानक बढ़ती हैं, तो खुदरा ईंधन की कीमतें भी तेजी से बढ़ सकती हैं।
- लंबे समय तक उच्च टैक्स दरें आर्थिक गतिविधियों को धीमा कर सकती हैं।
निष्कर्ष:
मोदी सरकार द्वारा पेट्रोल और डीजल पर टैक्स बढ़ाने का फैसला एक रणनीतिक कदम है। इसका उद्देश्य राजस्व जुटाना, वित्तीय स्थिरता बनाए रखना और तेल कंपनियों को राहत देना है।
हालांकि, इस फैसले से जनता को तत्काल कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन गैस सिलेंडर की कीमतें जरूर चिंता का विषय बनी हुई हैं।
Disclaimer:
यह लेख उपलब्ध आंकड़ों और तथ्यों के आधार पर तैयार किया गया है। “मोदी सरकार ने यूं ही नहीं बढ़ाया पेट्रोल पर टैक्स, बनाया है ये धांसू प्लान” शीर्षक वास्तविक घटनाओं पर आधारित है।